जिक्र

काफ़ी यादों ने मिलके हमें बेज़ार बना दिया...
तेरे ज़िक्र ने उन यादों को बेकरार बना दिया...!!!

लम्हा लम्हा गुजरता था खाली वक़्त हमारा...
तेरे ज़िक्र ने इसे इंतज़ार बना दिया...!!!

बुझे बुझे से रहते थे लफ़्ज़ हमारे...
तेरे ज़िक्र ने इन्हें अंगार बना दिया...!!!

महज अल्फ़ाज़ों का मेला होते थे, गीत हमारे...
तेरे ज़िक्र ने इसे यादगार बना दिया...!!!

युं तो सभी दिलकश लगते थे नज़र आने पर...
तेरे ज़िक्र ने दिलकशी को प्यार बना दिया...!!!

कई ख्वाहिशें थी दिल्लगी करने की "समीर"...
तेरे ज़िक्र ने इसे मेरा कारोबार बना दिया...!!!